Monthly Archives: सितम्बर 2008

मुस्लिम वशीकरण-प्रयोग

१॰ “आगिशनी माल खानदानी। इन्नी अम्मा, हव्वा यूसुफ जुलैखानी। ‘फलानी’ मुझ पै हो दीवानी। बरहक अब्दुल कादर जीलानी।”
विधिः- पूरा प्रयोग २१ दिन का है, किन्तु ११ दिन में ही इसका प्रभाव दिखाई देने लगता है। इस प्रयोग का दुरुपयोग कदापि नहीं करना चाहिए, अन्यथा स्वयं को भी हानि हो सकती है। साधना-काल में मांस, मछली, लहसुन, प्याज, दूध, दही, घी आदि वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहन कर साधना करनी चाहिए। पवित्रता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। लम्बी धोती या स्वच्छ वस्त्र को ‘अहराना’ की तरह बाँध कर साधना करनी चाहिए। शेष बची हुई धोती या कपड़े को शरीर पर लपेटते हुए सिर को ढँक लेना चाहिए। एक ही कपड़े से पूरा शरीर ढँकना चाहिए, जैसे हिन्दू-स्त्रियाँ पहनती है।
उक्त मन्त्र की साधना रात्रि में, जब ‘नमाज’ आदि का समय समाप्त हो जाता है, तब करनी चाहिए। साधना करने से पहले मुसलमानी विधि से वजू करे। हो सके, तो नहा ले। जप या तो हिन्दू-विधि से करे या मुसलमानी विधि से। हिन्दू-विधि में माला का दाने अपनी तरफ घुमाए जाते हैं। मुसलमानी विधि में माला के दाने अपनी तरफ से आगे की ओर खिसकाए जाते हैं। प्रतिदिन ११०० बार जप करे। यदि ११ दिन से पहले ‘साध्य’ आ जाए, तो न तो अधिक घुल-मिल कर बात करे, न ही किसी प्रकार का क्रोध करे। कोई बहाना बनाकर उसके पास से हट जाए। यदि ११ दिन में कार्य न हो तो २१ दिन तक जप करे। मन्त्र में ‘फलानी’ की जगह ‘साध्या’ का नाम लेना चाहिए।
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सर्व-संकटहारी-प्रयोग

सर्व-संकटहारी-प्रयोग

“सर्वा बाधासु, वेदनाभ्यर्दितोऽपि।
स्मरन् ममैच्चरितं, नरो मुच्यते संकटात्।।
ॐ नमः शिवाय।”

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देवाकर्षण मन्त्र

देवाकर्षण मन्त्र
“ॐ नमो रुद्राय नमः। अनाथाय बल-वीर्य-पराक्रम प्रभव कपट-कपाट-कीट मार-मार हन-हन पथ स्वाहा।”
विधिः- कभी-कभी ऐसा होता है कि पूजा-पाठ, भक्ति-योग से देवी-देवता साधक से सन्तुष्ट नहीं होते अथवा साधक बहुत कुछ करने पर भी अपेक्षित सुख-शान्ति नहीं पाता। इसके लिए यह ‘प्रयोग’ सिद्धि-दायक है।
उक्त मन्त्र का ४१ दिनों में एक या सवा लाख जप ‘विधिवत’ करें। मन्त्र को भोज-पत्र या कागज पर लिख कर पूजन-स्थान में स्थापित करें। सुगन्धित धूप, शुद्ध घृत के दीप और नैवेद्य से देवता को प्रसन्न करने का संकल्प करे। यम-नियम से रहे। ४१ दिन में मन्त्र चैतन्य हो जायेगा। बाद में मन्त्र का स्मरण कर कार्य करें। प्रारब्ध की हताशा को छोड़कर, पुरुषार्थ करें और देवता उचित सहायता करेगें ही, ऐसा संकल्प बनाए रखें।

अभीष्ट देवता का आकर्षण-मन्त्र तथा पितृ आकर्षण-मन्त्र कृपया हेम-ज्योत्सना पर देखें।

शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र

शत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीशत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र-मन्त्रस्य ज्वालत्-पावक ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवता, मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ, शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यासः- शिरसि ज्वालत्-पावक-ऋषये नमः। मुखे अनुष्टुप छन्दसे नमः, हृदि श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवतायै नमः, सर्वाङ्गे मम शत्रु-पाद-मुख-बुद्धि-जिह्वा-कीलनार्थ, शत्रु-नाशार्थं, मम स्वामि-वश्यार्थे वा जपे पाठे च विनियोगाय नमः।।

कर-न्यासः- ॐ ह्रां क्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ ह्रीं क्लीं तर्जनीभ्यां नमः। ॐ ह्रूं क्लूं मध्यमाभ्यां नमः। ॐ ह्रैं क्लैं अनामिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रौं क्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ ह्रः क्लः करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयादि-न्यासः- ॐ ह्रां क्लां हृदयाय नमः। ॐ ह्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा। ॐ ह्रूं क्लूं शिखायै वषट्। ॐ ह्रैं क्लैं कवचाय हुम्। ॐ ह्रौं क्लौं नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ ह्रः क्लः अस्त्राय फट्।

ध्यानः-
रक्तागीं शव-वाहिनीं त्रि-शिरसीं रौद्रां महा-भैरवीम्,
धूम्राक्षीं भय-नाशिनीं घन-निभां नीलालकाऽलंकृताम्।
खड्ग-शूल-धरीं महा-भय-रिपुध्वंशीं कृशांगीं महा-
दीर्घागीं त्रि-जटीं महाऽनिल-निभां ध्यायेत् पिनाकीं शिवाम्।।

मन्त्रः- “ॐ ह्रीं क्लीं पुण्य-वती-महा-माये सर्व-दुष्ट-वैरि-कुलं निर्दलय क्रोध-मुखि, महा-भयास्मि, स्तम्भं कुरु विक्रौं स्वाहा।।” (३००० जप)
मूल स्तोत्रः-
खड्ग-शूल-धरां अम्बां, महा-विध्वंसिनीं रिपून्।
कृशांगींच महा-दीर्घां, त्रिशिरां महोरगाम्।।
स्तम्भनं कुरु कल्याणि, रिपु विक्रोशितं कुरु।
ॐ स्वामि-वश्यकरी देवी, प्रीति-वृद्धिकरी मम।।
शत्रु-विध्वंसिनी देवी, त्रिशिरा रक्त-लोचनी।
अग्नि-ज्वाला रक्त-मुखी, घोर-दंष्ट्री त्रिशूलिनी।।
दिगम्बरी रक्त-केशी, रक्त पाणि महोदरी।
यो नरो निष्कृतं घोरं, शीघ्रमुच्चाटयेद् रिपुम्।।
।।फल-श्रुति।।
इमं स्तवं जपेन्नित्यं, विजयं शत्रु-नाशनम्।
सहस्त्र-त्रिशतं कुर्यात्। कार्य-सिद्धिर्न संशयः।।
जपाद् दशांशं होमं तु, कार्यं सर्षप-तण्डुलैः।
पञ्च-खाद्यै घृतं चैव, नात्र कार्या विचारणा।।

।।श्रीशिवार्णवे शिव-गौरी-सम्वादे विभीषणस्य रघुनाथ-प्रोक्तं शत्रु-विध्वंसनी-स्तोत्रम्।।
विशेषः-
यह स्तोत्र अत्यन्त उग्र है। इसके विषय में निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए-
(क)

(ख) प्रथम और अन्तिम आवृति में नामों के साथ फल-श्रुति मात्र पढ़ें। पाठ नहीं होगा।
(ग) घर में पाठ कदापि न किया जाए, केवल शिवालय, नदी-तट, एकान्त, निर्जन-वन, श्मशान अथवा किसी मन्दिर के एकान्त में ही करें।
(घ) पुरश्चरण की आवश्यकता नहीं है। सीधे ‘प्रयोग’ करें। प्रत्येक ‘प्रयोग’ में तीन हजार आवृत्तियाँ करनी होगी।

शत्रु-विध्वंसिनी स्तोत्र के एक अन्य विधान के लिये हेम-ज्योत्सना देखें।

अभीष्ट फल दायक बाह्य शान्ति सूक्त

अभीष्ट फल दायक बाह्य शान्ति सूक्त
(कुल-देवता की प्रसन्नता के लिए अमोघ अनुभूत सूक्त)

नमो वः पितरो, यच्छिव तस्मै नमो, वः पितरो यतृस्योन तस्मै।
नमो वः पितरः, स्वधा वः पितरः।।1
नमोऽस्तु ते निर्ऋर्तु, तिग्म तेजोऽयस्यमयान विचृता बन्ध-पाशान्।
यमो मह्यं पुनरित् त्वां ददाति। तस्मै यमाय नमोऽस्तु मृत्यवे।।2
नमोऽस्त्वसिताय, नमस्तिरश्चिराजये। स्वजाय वभ्रवे नमो, नमो देव जनेभ्यः।।3….(More)

आय बढ़ाने का मन्त्र

आय बढ़ाने का मन्त्र
प्रार्थना-विष्णु-प्रिया लक्ष्मी, शिव-प्रिया सती से प्रगट हुई कामाक्षा भगवती। आदि-शक्ति युगल-मूर्ति महिमा अपार, दोनों की प्रीति अमर जाने संसार। दोहाई कामाक्षा की, दोहाई दोहाई। आय बढ़ा, व्यय घटा, दया कर माई।
मन्त्र- “ॐ नमः विष्णु-प्रियायै, ॐ नमः शिव-प्रियायै, ॐ नमः कामाक्षायै, ह्रीं ह्रीं फट् स्वाहा।”
विधि- किसी दिन प्रातः स्नान कर उक्त मन्त्र का १०८ बार जप कर ११ बार गाय के घी से हवन करे। नित्य ७ बार जप करे। इससे शीघ्र ही आय में वृद्धि होगी।

नव-नाथ-स्मरण

नव-नाथ-स्मरण
“आदि-नाथ ओ स्वरुप, उदय-नाथ उमा-महि-रुप। जल-रुपी ब्रह्मा सत-नाथ, रवि-रुप विष्णु सन्तोष-नाथ। हस्ती-रुप गनेश भतीजै, ताकु कन्थड-नाथ कही जै। माया-रुपी मछिन्दर-नाथ, चन्द-रुप चौरङ्गी-नाथ। शेष-रुप अचम्भे-नाथ, वायु-रुपी गुरु गोरख-नाथ। घट-घट-व्यापक घट का राव, अमी महा-रस स्त्रवती खाव। ॐ नमो नव-नाथ-गण, चौरासी गोमेश। आदि-नाथ आदि-पुरुष, शिव गोरख आदेश। ॐ श्री नव-नाथाय नमः।।”

विधिः- उक्त स्मरण का पाठ प्रतिदिन करे। इससे पापों का क्षय होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है। सुख-सम्पत्ति-वैभव से साधक परिपूर्ण हो जाता है। २१ दिनों तक २१ पाठ करने से इसकी सिद्धि होती है।

नवनाथ-स्तुति

नवनाथ-स्तुति
“आदि-नाथ कैलाश-निवासी, उदय-नाथ काटै जम-फाँसी। सत्य-नाथ सारनी सन्त भाखै, सन्तोष-नाथ सदा सन्तन की राखै। कन्थडी-नाथ सदा सुख-दाई, अञ्चति अचम्भे-नाथ सहाई। ज्ञान-पारखी सिद्ध चौरङ्गी, मत्स्येन्द्र-नाथ दादा बहुरङ्गी। गोरख-नाथ सकल घट-व्यापी, काटै कलि-मल, तारै भव-पीरा। नव-नाथों के नाम सुमिरिए, तनिक भस्मी ले मस्तक धरिए। रोग-शोक-दारिद नशावै, निर्मल देह परम सुख पावै। भूत-प्रेत-भय-भञ्जना, नव-नाथों का नाम। सेवक सुमरे चन्द्र-नाथ, पूर्ण होंय सब काम।।”

विधिः- प्रतिदिन नव-नाथों का पूजन कर उक्त स्तुति का २१ बार पाठ कर मस्तक पर भस्म लगाए। इससे नवनाथों की कृपा मिलती है। साथ ही सब प्रकार के भय-पीड़ा, रोग-दोष, भूत-प्रेत-बाधा दूर होकर मनोकामना, सुख-सम्पत्ति आदि अभीष्ट कार्य सिद्ध होते हैं। २१ दिनों तक, २१ बार पाठ करने से सिद्धि होती है।

नवनाथ-शाबर-मन्त्र

नवनाथ-शाबर-मन्त्र
“ॐ नमो आदेश गुरु की। ॐकारे आदि-नाथ, उदय-नाथ पार्वती। सत्य-नाथ ब्रह्मा। सन्तोष-नाथ विष्णुः, अचल अचम्भे-नाथ। गज-बेली गज-कन्थडि-नाथ, ज्ञान-पारखी चौरङ्गी-नाथ। माया-रुपी मच्छेन्द्र-नाथ, जति-गुरु है गोरख-नाथ। घट-घट पिण्डे व्यापी, नाथ सदा रहें सहाई। नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई। ॐ नमो आदेश गुरु की।।”

विधिः- पूर्णमासी से जप प्रारम्भ करे। जप के पूर्व चावल की नौ ढेरियाँ बनाकर उन पर ९ सुपारियाँ मौली बाँधकर नवनाथों के प्रतीक-रुप में रखकर उनका षोडशोपचार-पूजन करे। तब गुरु, गणेश और इष्ट का स्मरण कर आह्वान करे। फिर मन्त्र-जप करे। प्रतिदिन नियत समय और निश्चित संख्या में जप करे। ब्रह्मचर्य से रहे, अन्य के हाथों का भोजन या अन्य खाद्य-वस्तुएँ ग्रहण न करे। स्वपाकी रहे। इस साधना से नवनाथों की कृपा से साधक धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। उनकी कृपा से ऐहिक और पारलौकिक-सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
विशेषः-‘शाबर-पद्धति’ से इस मन्त्र को यदि ‘उज्जैन’ की ‘भर्तृहरि-गुफा’ में बैठकर ९ हजार या ९ लाख की संख्या में जप लें, तो परम-सिद्धि मिलती है और नौ-नाथ प्रत्यक्ष दर्शन देकर अभीष्ट वरदान देते हैं।

गणेश-शाबर-मन्त्र की प्रमाणिकता

गणेश-शाबर-मन्त्र की प्रमाणिकता
पाठक बन्धुओं आज मैं कुछ अन्य प्रयोगों का प्रकाशन करने के लिये टाइप कर रहा था, किन्तु एक पाठक बन्धु श्री विक्रम जी की एक टिप्पणी ने प्रोत्साहित किया की चिट्ठे कि सामग्री के विषय में कुछ लिखुँ।
 श्री विक्रम जी ने अपने कमेन्ट में “गणेश-शाबर-मन्त्र” के विषय में एक सुझाव दिया है, उन्हीं के शब्दों में-“HOWEVER I FEEL THAT THIS GANESH SHABAR MANTRA GIVEN AS ABOVE IS MISSING SOME WORDS IN THAT. HENCE I REQUEST YOU TO KINDLY RECHECK.”
इस विषय में मेरा नम्र निवेदन है की श्री विक्रमजी यदि उक्त मन्त्र को जो उनके पास उपलब्ध है, को भेजते तो निश्चय ही मेरे, पाठकों तथा साधक बन्धुओं के ज्ञान में वृद्धि होती। अतः आपसे अनुरोध है, कृपया आपके पास उपलब्ध मन्त्र भेजे, उसे सहर्ष प्रकाशित किया जायेगा।

यहाँ ध्यातव्य है, किसी मन्त्र, स्तोत्र आदि के असंख्य पाठान्तर, विधि-अन्तर सम्भव है; सम्भव ही नहीं अपितु हैं। इनके सामने (प्रकाशन) न होने पर आज ये हालत हो गई है की छिपाते-छिपाते आज यह विद्या ही लुप्त-प्राय हो चुकी है। सामान्य लोगों की श्रद्धा इस विद्या पर से उठ गई है। कुछ विज्ञ सज्जनों को विश्वास ही नहीं होता कि इन मन्त्रों द्वारा व्यक्ति की अभिलाषाओं की पूर्ति भी हो सकती है। (‘सिद्ध वशीकरण मन्त्र’ की पोस्ट १३॰०८॰२००८ के कमेन्ट देखेंगे तो माजरा समझ में आ जायेगा)
मन्त्र-विद् साधकों एवं ‘मन्त्र-विद्या’ के प्रशंसकों, जिज्ञासुओं के लिए यह गम्भीर विचार का विषय है। आमजन में इन सबके के प्रति भ्रान्ति फैली है, किन्तु आस्थावान् सज्जन इन पाठान्तरों, साधन-विधि के अन्तरों से भी लाभ उठा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण “श्रीदुर्गासप्तशती”, “श्रीरामचरितमानस”, चारों वेद, अठारह पुराण, असंख्य आगम-निगम-तन्त्र शास्त्र हैं, जो असंख्य पाठान्तरों सहित वर्त्तमान में भी प्रचलित हैं। मैंने स्वयं ने aspundir’s weblog पर देवी कवच को अन्तर सहित दिया है। मेरे पास बहुत से विधान हैं, जो पाठान्तरों से भरपूर है। समय आने पर उनको भी संदर्भ सहित प्रकाशित किया जायेगा। अस्तु आवश्यकता है, विस्तृत शोध की जिसके विषय में इस ब्लोग की साइड-बार में भी मैंने टिप्पणी डाली है।
मैं श्री विक्रम जी जैसे सुधी पाठकों का आभारी हूँ, जिन्होंने इस विषय में ध्यान आकृष्ट किया है। आशा है सुधी-विज्ञ-जन, पाठक-गण इसी प्रकार स्नेह बनाए रखेंगे।